Friday, November 21, 2008

जानती हो न माँ

मै जब रोना चाहती हु पर रो नही पाती
मेरे उदास चेहरे , कापते होठो ओर बरोनियो के परदे से झाकते आंसुओ को तुम देख लेती हो न
मेरे दिल से उठी उमंगो के उफान को जब मै अपने अभिव्यक्ति हीनता के बाँध से रोक देती हु,
तुम उसे अपने दिल में महसूस करती हो न
अपनी गलतियों को जब मै अपने चेहरे के बनावटी भावो से नकार देती हु
तुम उसे पहचान कर माफ़ करती हो न
तुम सब जानती हो न माँ .

1 comment:

Unknown said...

really vry emotional