जितना तुमको देखती हु उतना मै कापती हु
बढाती तो हु पर हाथ मिला नही पाती
जलती हु हर दिन इस आग में
आख़िर ख़ुद को क्यों नही बचा पाती
क्युकी तुम समझदार हो
मै तुमसे दूर क्यों नही जाती .
एक सवाल है जो ख़ुद से बार बार पूछती हु
क्यों मै तुझको हर बार टोकती हु
एक रेखा दरमिया मै खीच क्यों नही लेती
क्युकी तुम समझदार हो
मै तुमसे दूर क्यों नही जाती.
रात एक गजल ने दिल तोड़ दिया है मेरा
सो बार तुझसे दूर किया आखिर नाम जोड़ दिया तेरा
मेरी तन्हाई मुझे अकेले में क्यों नही खाती
क्युकी तुम समझदार हो
मै तुमसे दूर क्यों नही जाती.
सुबह से शाम तक मै ख़ुद को अकेला नही पाती
जब से मिली हु तुमसे मै बिरहा नही गाती
चाहती तो हु पर ख़ुद से मिल नही पाती
क्युकी तुम समझदार हो
मै तुमसे दूर क्यों नही जाती.
अपनी इस हरकत पे मुझे रत्ती भर भी शर्म नही आती
कहती तो हु पर क्यों कर नही पाती
जैसे छाया शरीर दे ठोकर नही खाती
क्युकी तुम समझदार हो
मै तुमसे दूर क्यों नही जाती.
मेरी ये गुस्ताखी मुझे एक पल नही भाति
पाव तो रखती हु मगर चल नही पाती
इस बरफ के जंगल में मै क्यों गल नही जाती
क्युकी तुम समझदार हो
मै तुमसे दूर क्यों नही जाती.
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2 comments:
keeps on....................
may u got always in success in ur life..................
achhi hai...
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