Friday, November 7, 2008

मै ही स्वतंत्रता हू

हा मै ही स्वतंत्रता हू
ओर वो जो बेधड़क मेरी नसों से गुजर गया वो विरोध मेरा प्रेमी है
मुझे लाज नही आती कहने में की लगभग हर रात हमबिस्तर रही हू उसके, ओर उन्ही अधजगी खूबसूरत रातो का परिणाम है वो मेरा जिगर का टुकडा विचलन
वो अभी छोटा है
बोल नही पाता रोता है चिलाता है ओर ऐसे ही अपनी व्यथा बता है
उसकी ये व्यथा कोई समझ नही पता
लेकिन मै सब समझती हू आखिर माँ हू
वो अभी संघर्ष नही खा पाता इसलिए स्तनपान कराती हू केवल विचार ही पिलाती हू
वो बड़ा होकर परिवर्तन बनेगा हमारा नाम रोशन करेगा
न न उसे गाली मत देना वो मेरी नाजायज़ ओलाद नही प्रेम साधना है
विरोध ने उसे अभी नाकारा नही है वो मेरा बच्चा है आवारा नही है
उसे अनाथ भी मत कहना क्योकि मै अभी जिन्दा हू
ओर मै बता दू की अपने इस कृत्य पर मै शर्मिंदा नही हू



3 comments:

Unknown said...

its really very nice poem

bisani said...

ahmm..khubsurat vidha...aur darshan..!
apkee(halki mein tum ka pryog karnaa chahtaa tha) sabse acchi baat ki aap apne lekhan ko saath le ke chalte hai..har wakt..
akasar dekhaa jataa hai ki kavi apnee kavita ke saath nahin chaltaa..kavita ek najayaz aulaad ki tarah rahtee hai !
ye apki kavita ki samjh hai ya samajh ki kavita ..ho bhi ho prsanshniya hai !

bisani said...

ahmm..khubsurat vidha...aur darshan..!
aapkee(halaki mein tum ka pryog karnaa chahtaa tha) sabse acchi baat ye hai ki aap apne lekhan ko saath le ke chaltee hai..har wakt..!
akasar dekhaa jataa hai ki kavi apnee kavita ke saath nahin chaltaa..kavita ek najayaz aulaad ki tarah rahtee hai !
ye apki kavita ki samjh hai ya samjh ki kavita .. jo bhi ho prsanshniya hai !