Thursday, December 18, 2008

जलती ईट...

दादी कहानी सुनाती.
एक चालक बन्दर, बच्चे का खाना रोज़ छीन कर खा जाता,
बच्चे को गुस्सा आया
बन्दर को दावत पर बुलाया, बढ़िया खाना बनाया ओर जलती ईट का आसन लगाया।
बन्दर उस पर बैठते ही जल गया
तब से उसके पिछवाडे का रंग बदल गया।
ये कहानी दादी हर रोज़ सुनाती,
कहानी के बाद संदेश पढाती,
बच्चे की बुद्धिमानी को ही सीख बताती।
लेकिन मै हमेशा उस जलती ईट के बारे में सोचती ,
सौ सवाल पूछती,
कितना,कैसे और कहाँ गर्म किया ईट को?
उसे ये फालतू लगता,
ठोक पीट कर सुला देती।
रात भर सपने में वो ईट नाचती,
जिसने चालक बन्दर को सबक सिखाया
सोचती काश ! वो ईट मेरे पास होती,
सोनू को मज़ा चखाती,
घर बुलाती, और उसी पर बैठाती।
बिन बात मुझे पीटता है,
पहले मारता है फ़िर दूर जाकर खिझाता है।
आज भी वो जलती ईट याद आती है,
जब कोई नपुंसक धक्का मारकर हँसता है और दूर से दांत पीसता है।

3 comments:

bisani said...

ek puraani kavitaa yaad ayee ...
tsleemaa nasreen ki..
yahaan likhne ki himmat nahin hoti...par goonnj gayee ekaek..

ek baat kahnaa chahtaa hun..kavita ki prakriya mein jo sabd soche gaye usse vaise hi likhein..chaahe ve logon ke liye kitne hi nagn kyon na hon(mere vichaar se)
mujhe lagtaa hai..ki aap ne bahut kuch socha hoga(iss puri kavita ki prakriya mein ) ..par likha ek hi panktee..
kavita ke maidaan mein sabdon ko puri nagnataa aur satyataa ke saath utarnaa chaahiye..
kuch bachaa na rah jaye sab udel dein..!

36solutions said...

स्‍वागत है ..........

आरंभ में संजीव

Ajeet Singh said...

Blog ki duniya mein aapka swagat hai...