मेरा पूरा विमर्श मौलिकता को लेकर है मै हर पल मौलिकता की खोज में हु...नकली ओर बनावटी मुझे कतई पसंद नही।
सारे आवरण नोच नोच कर फेक देना चाहती हु हर एक चेहरे से, शब्द से, ओर देह भाषा से
मै चाहती हु की हम एक भाषा खोजे,जो शब्द विहीन हो पर संवेदना विहीन नही
कही से वो साहस ढूंढ लाये जो ये स्वीकार सके की "मुझसे गलती हो गई"
गलती हो जाना उतना ही सामान्य है जितना पाव फिसल जाना ओर ऐसा भी नही की इसकी स्वीकारोक्ति हमें ह्रदय से नही होती लेकिन हमारा नकलीपन हमें रोक देता है एक जाली अहम् का श्वाशोछ्वास नथुनों से निकलता है ओर वातावरण को भेद देता है....
ऐसे ही इतना प्रददुषण नही बढ़ा है जो झूठा आवरण हमने ओढा है वो बहुत तेजी से साँस ले रह है ...धुआ बढ़ रहा है ...वो बनावटीपन का छल्ला मुझे अपने चारो ओर दिख रहा है ...मेरा दम घुट रहा है.....
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5 comments:
good poetry. its true that in this so called progressive world we r not ready to accept our fault, n we r living a dramatical life.always.....
keep it up, my best wishes r with u.
वाह !
बहुत खूब !!
दिल को छू गई पंक्तियाँ !!!
आपकी भावनात्मक रचना
चिंतन-मनन को विवश करती है !
जिस तरह से हमारे सामाजिक व
सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट आई है
वह अत्यन्त दुखद है !
सारे रिश्ते नाते ग्रीटिंग कार्ड और
एसएमएस तक सिमट कर रह गए हैं !
किसका कौन सा चेहरा असली है ,,,,,,
यह बताना मुश्किल होता जा रहा है !
लेखन निरंतर जारी रखें !
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !!!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
Aapne bilkul sahi kaha. Aapki rachana har us aadmi ka aksh ubharti hai jiske ek se adhik chehre(naqab)hain aur aaj vartmaan samaya mein mujhe lagta hai har ek vyakti ke chehre ke peeche ek chehra chupa huya hai.
Likhte rahiye, meri dher sari subhkamnayen...
kuch to samajh mein aati hai apki peeda..par.. kabhi kabhi ham peeda mein hi anand khoj lete hain..!!
kaheen aisaa to nahin..
agar aisaa nahin hai to maulikata ke saath badlaav ko bhi sthaan milnaa chahiye..( desh..kaal paristhiti..)
mujhe to lagtaa hai ki maulikta sapechik( relative) hai..aur badlav ka pratibimb ho saktee hai..
prasn ye hai ..ki badlav kaisaa hai..!
kam se kam mein to apne baare mein kah hi saktaa hun ki..badlaav bhale bechehra hi sahi kaheen na kaheen mere pathreele chehere se behtar hai..!
maulikataa mein bahut vyapktaa hai shayad..kyon..?
wah ji bahut khoob likha ...
likhte rahiye ....
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